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Tuesday, December 20, 2016

अनुपम मिश्र: साफ़ माथे वाले समाज की आवाज़।



एक हीरो वो होता हैं, जिसे दुनिया जानती हैं। एक वो, जो इस दुनिया को जानता हैं। आदमी को आदमी बनाने की एक पाठशाला, चली गई। अनुपम मिश्र चले गए। बहुत सोचता हूँ। ये भी की क्या, हमारी परेशानिया , हमारे चिंतन का दायर , हमारे व्यक्तित्व जैसा बोना हो गया हैं. हमारे चिंतन के दायरे घर और ऑफिस के बीच के सुविधा से परे नहीं जाते। सोचता हु, कब और कभी? क्या हम अपने नल और नालियो से उठकर , नदियों और तालाबो के बारे में सोच सकते हैं.  अनुपम मिश्र को जब भी पढ़ता था, एक दिलासा वापस आता था। वो भरोसे की आवाज़ थे। ऐसी आवाज़ जो परेशान, उत्तेजित, आक्रोशित नहीं करती थी, छलावा नहीं करती थी. वरन शांत करती थी, दिलासा देती थी। वो हमारे अपने इतिहास की गूंज थे। वो इतिहास जो कभी पढ़ाया नहीं गया. वो इतिहास जिसे हासिये पे डाल दिया गया। पानी को जानने वाला एक समाज चला गया।

अनुपम मिश्र , जब भी पानी और तालाब को कभी कोई खोजने की , जानने की कोशिश करेगा, आप याद आएंगे। अपनी चिंताओं के दायरे जब भी अपने घर की दहलीज से पर जायगे, आप याद आएंगे।  बहुत याद आएंगे।


Monday, September 5, 2016

श्रीगुरवे नमः


अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 

गुरु को व्यक्तित्व से जोड़ना शायद गलत हो।  गुरु नहीं होते , गुरुत्व होता हैं। आश्चर्य नहीं, गुरुत्व से ही पृथ्वी पर विकास हुआ हो। गुरुत्व से ही पृथ्वी ने सब कुछ थाम रखा हैं. 
गुरुत्व घटित होता हैं। बच्चा भी बहुत कुछ सीखा देता हैं गर आप और बच्चे के बीच मन नाम का बन्दर न हो। जहा वास्तविक प्यास होती हैं , वर्षा वही घुमड़ती हैं। 
ओशो कहते हैं: मूर्खता हैं गर आप गुरु को खोज रहे हो। कभी कोई शिष्य गुरु को नहीं खोज पाता। गुरु ही सही अवसर पर शिष्य के पास घटित होते हैं। 
सारी यात्रा होश की तरफ ले जाती हैं गर आप खोज रहे हो। नहीं तो एक गहरी आध्यात्मिक नींद में हम सब सो रहे हैं। स्वप्न देख रहे हैं , तितली के पीछे भागने का। ओशो कहते हैं: बहुत सम्भावना हो कि , तितली ही स्वप्न देख रही हो , आप के होने का।  गहरा और चौकाने वाला प्रश्न है।  चौक गए , समझाना सोये थे। यीशु से लेकर बुद्ध और ओशो इस नींद की बात कर रहे है। इसी नींद में सोये इंसान गुरुत्व की घटना से वंचित होते हैं , विरोध करते हैं, मार देते हैं और फिर तथागत को भगवान का रूप दे देते हैं। भगवान मतलब : वो इंसान जो हमें नींद से जगाता हैं , हमें अपने क्षुद्रता और काल्पनिक बेड़ियो से परिचय करवाता हैं, आजाद करवाता हैं. परंतु हम उन बेड़ियो और क्षुद्रता के इतने आदी हैं कि उस इंसान को मार के , पुनः अपने मानसिक जेल में आकर बेड़िया पहन लेते हैं। कालांतर में उसे किसी अवतार का रूप दे देते हैं। 
क्षुद्रता हमारा चुनाव हैं। भीड़ का चुनाव हैं। क्षुद्रता लोकतान्त्रिक हैं।   

पुराण कहते हैं : जगत विष्णु का स्वप्न हैं। आइस्टीन की रिलेटिविटी और पुराण के कथन , क्षितिज पर कही एक महीन धुंधलके में मिलते प्रतीत होते हैं। जागरण की यात्रा और विज्ञानं के तर्क सामानांतर चलते हैं और कही मिलते प्रतीत होते हैं। 
गुरुत्व सम्बन्ध हैं निराकार और निरूप से। जब उससे सम्बन्ध होता हैं , गुरुत्व घटित होता हैं। एक डाकू एक महान ग्रन्थ लिख डालता हैं।
गुरुत्व पॉजिटिव और नेगेटिव कणो के बीच सदा मौजूद न्यूट्रॉन हैं। वही योगी स्वरुप हैं। 
कृष्ण जिसे सत चित आनंद कहते है. 
सुख और दुःख के दो क्षोर के बीच, स्थितिप्रज्ञ।
उसे जानने की यात्रा जीवन हैं। 
बाकि सब माया !

आज इतना ही। 
राहुल 

Tuesday, July 19, 2016

क्या भुलु, क्या याद करू


बिछड़ने के इन पलो में, अब क्या पुछु, संवाद करू.
अपनी चिन्ताओ के पीछे, क्यों वक्त तुम्हारा बर्बाद करुँ।

कितनी बाते, कितने किस्से, यादो का शहर आबाद करू।
अनमना सा सोच रहा, क्या भुलु, क्या याद करू।

चौराहे पर फिर खड़ा मैं, किस पथ पर, जाऊ पथिक।
अब तक तुम साथ थे, अब राह हुई और कठिन।

साहस जो सिखाया और निडरता का ख्वाब बुना।
तुम बिन संभव न था, वो जो मैंने पथ चुना।

किसी सुहाने मोड़ पर , राहे फिर मिल जाय, फरियाद करुँ।
अनमना सा सोच रहा, क्या भुलु, क्या याद करू।

Tuesday, May 10, 2016

महाभारत


कोई बच्चा भिखारी पैदा नहीं होता, वरन बादशाह ! एक निज वैभव।
सांसारिकता उसके क्षरण का कारक हैं
और सच्ची आध्यात्मिकता उस बच्चे को जिन्दा रखने का तप।
क्या हम खुद को ही खोते हैं, और सारी उम्र खुद को ढूंढते हैं?
शायद जहां दूसरे की आँखों का बोध होता हैं,
वही से दूसरा बनने की प्रक्रिया शुरू होती हैं।
और एक सिफर की तरफ सफर शुरू होता हैं।
खुद से बिछडने का।
तलाश शून्य से शुरू होकर शून्यता के बोध से महा -शून्य में मिल जाने की ही हैं।
जन्मों ये यात्रा जारी रहती हैं।
राजकुमार और बुद्ध।
दो क्षोरो के प्रतिक हैं।
जन्म लेना पृकृति का तुम्हारा चुनाव हैं।
बुद्ध होना तुम्हारा।
इन दो चुनावो के बीच,
किसी अर्जुन को , कृष्ण मिल जाते हैं।
और कुछ कर्ण और अभिमन्यु की तरह अभिशप्त हो जाते हैं।
ये सारे पात्र , अलग अलग नहीं हैं।
हम ही जीते हैं, एक ही जिंदगी में।
रोज।
हर रोज महाभारत होती हैं।
और गीता भी।
संसार से सम्बन्ध महाभारत हैं।
गीता खुद से संवाद।

यदा यदा ही धर्मस्य।
-राहुल

Sunday, April 24, 2016

ये कैसा वक्त हैं।

ख़ामोशी में ये कैसा शोर हैं।
शोर में ये कैसी ख़ामोशी हैं।
आँखों में ये कैसा, पानी हैं।
होंठो पर ये कैसी हंसी हैं।

अमृत भी पीना हैं,
मर मर कर जीना हैं।
जहर भी पीना हैं।
जी जी कर मरना हैं।

होश में ये कैसी बेहोशी हैं।
बेहोशी में एक अजीब सा होश हैं।
कोई कहता, सदा तुम हो।
कोई कहता खानाबदोश हैं.

ख्वाइशों में ये कैसी नफरत हैं।
नफ़रतो मे ये कैसी ख्वाइश हैं।
जमीर का पर्दा नंगा करके।
जख्मो की कैसी नुमाइश हैं।

ये कैसा वक्त हैं।
कमबख्त हैं।

अरमानो को ज़हर देकर।
नोच लो  वजूद को।
टुकड़ो में बाट दो, हाड मांस को।
न्योता दे दो, गिद्धों को।

तेरे जीने का कोई मतलब नहीं।
तेरे इंसा होने का, कोई मतलब नहीं।

Tuesday, April 12, 2016

श श..भारत गहरी नींद में सो रहा हैं।

श श श श श श श..... भारत गहरी नींद में सो रहा हैं। या यूँ कहा जाये, सोने का नाटक कर रहा हैं। और सब शामिल हैं। ज्ञानी, अज्ञानी , मुर्ख, राजा , प्रजा , शिक्षक, रक्षक , न्यायविद। कृपया आप भी सो जाये.

Tuesday, February 23, 2016

राजनीती देश और अवाम

प्रिय राहुल, नेतागण और सभी पहले , दूसरे तीसरे , चौथे स्तम्भ।

हर मुद्दे पर विरोध नहीं होता, मेरे दोस्त। हर मुद्दे के दो पक्ष नहीं होते। कुछ मुद्दो पर एक ही पक्ष होता है , देश का पक्ष। देश के लिए शहीद, का पक्ष। देश की अवाम का पक्ष।
कुछ मुद्दो पर राजनीती की नहीं जाती , बल्कि उसे , सरकार और देश को मजबूत बनाया जाता हैं।
अफ़सोस , तुम्हे किसी ने ये बताया ही नहीं। राजनीती देश और अवाम को सशक्त बनाने का साधन हैं , स्वयंम कोई साध्य नहीं।
समय चूनौती देता है और अवसर भी। कोई भी मुद्दा हो, एक अवसर होता हैं , देश और समाज की दशा और दिशा देने और बदलने का। राजनीती सिर्फ विरोध नहीं हैं। राजनीती लीड करने और लीडर देने का नाम हैं।
हर गंभीर मुद्दा एक लक्षण हैं , कही कुछ बीमारी हैं। लेकिन , राजनीतिज्ञ उसे सिर्फ और सड़ाते हैं और सप्रेस करते हैं। और हमारा सस्ता , दो टके का मीडिया ? छोड़ो यार।
विदा करो और मुक्त करो इस देश को महापुरुषों के नामो से। जो चूनौतिया उन्हें दिखी , उन्होंने निर्णय लिए। समय की सापेक्षता के हिसाब से।
किन्तु समय परिवर्तित हैं। हम क्या कर रहे हैं ? हम ने कौन से निर्णय लिए ? हमने निर्णय के अवसरों को सिर्फ गवाया हैं। कभी किसी महापुरुष , कभी जाती , कभी धर्म , कभी गरीब के नाम पर। हर बीमारी के नए टिके ईजाद होते हैं , हम ये नहीं कहते उसी कंपनी का टिका जो ५० साल पहले बना , उपयोग करेंगे क्योकि वह कंपनी पूजनीय हैं। वह कंपनी भगवान बन मंदिर में बैठी हैं। फिर किसी व्यक्ति के लिए क्यों ?
पुराने टिके से नयी बीमारी ठीक नहीं होगी।
नए सवाल चाहिए और नए हल।
देश निर्णय से बनता हैं।
राजनीती करने से नहीं।
ये निर्णय के क्षण हैं।
समय साक्षी हैं।
अवाम अभी भी कल्कि की प्रतीक्षा में आँखे धुंधली कर नपुंसक खड़ी हैं।

Wednesday, January 6, 2016

" मैं हूँ क्योंकि, हम हैं! "

कुछ आफ्रिकन आदीवासी बच्चों को एक मानवविज्ञानी ने एक खेल खेलने को कहा।

उसने एक टोकनी में मिठाइयाँ और कैंडीज एक वृक्ष के पास रख दिए।

बच्चों को वृक्ष से 100 मीटर दूर खड़े कर दिया।

फिर उसने कहा कि, जो बच्चा सबसे पहले पहुँचेगा उसे टोकनी के सारे स्वीट्स मिलेंगे।

जैसे ही उसने, रेड़ी स्टेडी गो कहा.....

तो जानते हैं उन छोटे बच्चों ने क्या किया ?

सभी ने एक दुसरे का हाँथ पकड़ा और एक साथ वृक्ष की ओर दौड़ गए, पास जाकर उन्होंने सारी मिठाइयाँ और कैंडीज आपस में बराबर बाँट लिए और मजे ले लेकर खाने लगे।

जब मानवविज्ञानी ने पूछा कि, उन लोगों ने ऐंसा क्यों किया ?
 
तो उन्होंने कहा---" उबुन्टु ( Ubuntu ) "

जिसका मतलब है,

" कोई एक व्यक्ति कैसे खुश रह सकता है जब, बाकी दूसरे सभी दुखी हों ? "

उबुन्टु ( Ubuntu ) का उनकी भाषा में मतलब है,

" मैं हूँ क्योंकि, हम हैं! "